Essay on Dowry System in Hindi : दहेज का अर्थ उन उपहारों से है जो एक पिता या अभिभावक द्वारा उसकी बेटी को उसकी शादी के समय दिए जाते हैं। प्राचीन काल में, अपने स्वयं के घर को स्थापित करने के लिए नववरवधू को एक प्रकार की सहायता के रूप दिया जाता था।
ज्यादातर लोग इन दिनों भी दहेज प्रथा का पालन कर रहें है। जिसे अब नकदी कि जगह गरेलु सामान दे कर किया जा रहा है। क्योंकि भारत सरकार ने तहेज प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया है।
उन उपहारों को स्वेच्छा से और बिना किसी मांग के दबाव में दिया गया था। लगभग सौ साल पहले, एक रिवाज था कि भावी पत्नि अपने होने वाली दुल्हे के पिता को उपहार भेंट करती थी। लेकिन अब यह रिवाज कई व्यक्तियों के दुर्विचारो की वजह से दजेह प्रथा के तबदील हो गया है।
दुल्हन के माता-पिता को दूल्हे और उसके माता-पिता को उपहार देने होते हैं। जैसे, दहेज के रूप में जाना जाता है।
अब, यह प्रथा एक सामाजिक बुराई बन गई है। बिना दहेज के लड़की की शादी की करना बेहद मुश्किल हो गया है। अब यह प्रथा एक सामाज मे कई बुराईयों का कारण बन रही है। दहेज प्रथा इन दिनों सबसे बड़ी सामाजिक बुराइयों में से एक है जिसमे सैकड़ों निर्दोष महिलाओं की जान चली गई है।
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यहां तक कि शिक्षित माता-पिता भी उम्मीद करते हैं कि उनकी बहू अपने नए परिवार के लिए पैसे और उपहार लाएगी। वे दहेज प्रथा का इस्तेमाल अमीरों की अमीरी में कटौती के रूप में करते हैं। वे किसी और की बेटी को यह सोचे बिना यातनाएं देते हैं कि उनकी अपनी बेटी के साथ भी ऐसा दुरव्यवहार हो सकता है।
हमारे देश में दहेज का लेन-देन बंद करने के लिए कई बड़े फसले वह कानून बनाए गए, जिसका उल्लंघन करना दंडनीय अपराध है। फिर भी दहेज प्रथा बहुत अधिक अस्तित्व में है ।
दहेज निषेध अधिनियम, 1961
दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 ने दहेज विरोधी कानूनों को समेकित किया जो कुछ राज्यों पर लागु किया गया था। यह कानून धारा 3 में किसी भी व्यक्ति को दहेज देने या लेने, पर दंड का प्रावधान रखता है। न्यूनतम सजा 5 साल के लिए कारावास हो सकती है और ₹ 15,000 से अधिक जुर्माना या प्राप्त दहेज का मूल्य, जो भी हो। इस अधिनियम में दहेज को किसी भी संपत्ति या मूल्यवान चिज के रूप में परिभाषित किया गया है। दहेज देने या लेने का दंड उन मामलों में लागू नहीं होता है, जो बिना किसी मांग के विवाह के समय दिए जाते हैं।
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निष्कर्ष
दहेज प्रथा भारतीय समाज के लिए एक बहुत बड़ी समस्या है जिसका मुल रूप से ग्रामीण क्षेत्रो के ज्यादा उल्लंघन होता हैं। जिसके कारण हमारे देश की कई महिलाए प्रभावित हुई है। जब तक हम अपने दिलों मेे परिवर्तन लाने के लिए तैयार नहीं होगें तब तक यह प्रथा ऐसे ही चलती रहेगी।
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