Essay on Rani Lakshmi Bai in Hindi : 19 नवंबर 1828 को वाराणसी शहर के एक मराठी ब्राह्मण परिवार में रानी लक्ष्मी बाई का जन्म हुआ। उसका नाम मणिकर्णिका तांबे रखा गया और उसके लोग प्यार से मन्नू कहकर पुकारते थे। लक्ष्मी बाई के पास वह विरासत थी जो दुनिया में बहुत कम महिलाओं के पास होती है। वह अपने पिता की प्रिय थीं और कम उम्र में उनकी माँ की मृत्यु हो जा ने कारण उन्हें छोटी उम्रम ही बड़ो कि तरह जिम्मेदारीयों को उडाना पड़ा।

उन्हें अंततः मराठों का संरक्षण प्राप्त हुआ जो उनके संरक्षक बन गए। मन्नू बाई एक जिज्ञासु और साहसी महिला थीं। लड़ाई, युद्ध और घुड़सवारी के विभिन्न रूपों में कुशल, वह अपने राज्य के सर्वश्रेष्ठ पुरुषों के साथ प्रतिस्पर्धा करती थी। वह बहुत ही चतुर और सुंदर थी। उसकी अपने दोस्त नाना साहिब से साथ एक गहरी दोस्ती थी, जो मराठा पेशवा का पुत्र था।

Essay on Rani Lakshmi Bai in Hindi

Essay on Rani Lakshmi Bai in Hindi

उनकी सुंदरता की अफवाहें तेजी से फैलीं और 14 साल की उम्र में उनका विवाह झांसी के राजा गंगाधर नयालकर के साथ हुआ। इसके बाद उसे झांसी की रानी की उपाधि से विभूषित किया गया। उसने दामोदर नाम के अपने इकलौते बच्चे को जन्म दिया, जो बहुत ही कम उम्र में मर गया। इस दुख की घड़ी में शाही दंपति ने एक और बच्चे को गोद लिया और अपने खोए बेटे के नाम पर उसका नाम रखा।

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हालांकि, रानी को एक और झटका लगा, क्योंकि महाराजा जल्द ही बीमार पड़ गए और उनकी मृत्यु हो गई। सिद्धांत के अनुसार, अंग्रेजों ने उन सभी राज्यों पर कब्जा कर लिया, जिनके पास सिंहासन का कानूनी उत्तराधिकारी नहीं थे।

इस प्रकार, लॉर्ड डलहौजी ने झाँसी पर कब्जा करने कि कोशिश की। लक्ष्मी बाई इससे क्रोधित हुईं लेकिन अंततः ब्रिटिश ने झांसी को बरबाद कर उसपे कब्जा कर लिया। उन्होंने लॉर्ड डलहौजी के खिलाफ कुछ याचिकाएँ दायर कीं लेकिन उनकी सारी कोशिशें नाकाम साबित हुईं।

हालाँकि, झाँसी कि रानी को झाँसी पर पुनः विजय प्राप्त करने का एक मौका तब मिला जब 1857 के विद्रोह मेे दिल्ली पर कब्जा करने वाले सिपाहियों के साथ फिर से मुगलों का झंडा बुलंद हुआ।

रानी झाँसी में अपने किले पर कब्जा कर लिया और वहाँ महारानी के रूप में शासन किया। उन्हें अपने सेनापति तात्या टोपे का समर्थन प्राप्त था। जल्द ही, जनरल ह्यूग रोज के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने झांसी पर एक बार फिर हमला किया और कब्जा कर लिया।

रानी को अपनी बची सेना के साथ भागना पड़ा जिसके बाद तात्या टोपे के साथ मिल कर उन्होनंे ग्वालियर किले पर चढ़ाई की और विजय प्राप्त कि। जिसके बाद ग्वालियर के शासक ने अंग्रेजों को उनकी मदद करने और रानी लक्ष्मी बाई को किले से निकालने के लिए आमंत्रित किया। रानी झांसी ने अंग्रेजो से एक घातक लडा़ई लड़ी। लडाई में अग्रेंजी सेना बहुत बड़ी थी। जिसमें रानी लक्ष्मी बाई के सर पर तलवार लगने से रानी लक्ष्मी बाई कि मृत्यु हो गई।

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हम सभी भारतीयों, पुरुषों या महिलाओं, युवा या वृद्धों के लिए रानी लक्ष्मी बाई विलक्षण प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।

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